ओडिशा के गंधमर्दन पहाड़ियों से 17 छत्तीसगढ़ी पर्यटकों का सफल बचाव: 15 घंटे तक फंसे रहे बोल बम श्रद्धालु, मानसून में ट्रेकिंग की चुनौतियां

"Rescue operation scene showing emergency responders and officials in safety gear conducting a search and rescue mission in mountainous terrain, representing the successful evacuation of 17 Chhattisgarh tourists from Gandhamardhan Hills in Odisha during heavy monsoon rains."

भुवनेश्वर/बरगढ़, 24 जुलाई 2025: ओडिशा की गंधमर्दन पहाड़ियों में फंसे 17 छत्तीसगढ़ी पर्यटकों को 15 घंटे की लंबी रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद सुरक्षित निकाला गया है। यह घटना 23-24 जुलाई की रात को हुई, जब भारी बारिश और खराब मौसम के कारण नृसिंहनाथ से हरिशंकर मंदिर जाने वाले तीर्थयात्री रास्ता भटक गए। सफल बचाव अभियान में ओडिशा पुलिस, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, फायर सर्विसेज और स्थानीय स्वयंसेवकों ने मिलकर काम किया। यह घटना मानसून के दौरान पहाड़ी इलाकों में ट्रेकिंग की चुनौतियों को दर्शाती है और आपातकालीन सेवाओं की तत्परता का भी उदाहरण प्रस्तुत करती है।

श्रावण मास में धार्मिक यात्रा का दुर्घटना में बदलना

छत्तीसगढ़ के सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के 17 श्रद्धालु, जिनमें 13 महिलाएं और 4 पुरुष शामिल थे, श्रावण मास के पवित्र महीने में बोल बम यात्रा पर निकले थे। यह समूह बरगढ़ जिले के नृसिंहनाथ मंदिर से बोलांगीर जिले के हरिशंकर मंदिर तक की पारंपरिक तीर्थयात्रा कर रहा था। लगभग 17 किलोमीटर के इस वन मार्ग को पार करना आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन भौगोलिक चुनौतियों से भरपूर भी है। 23 जुलाई की शाम को जब यह समूह ट्रेकिंग शुरू कर रहा था, तब मौसम साफ था, लेकिन अचानक से तेज बारिश शुरू हो गई और रात के अंधेरे में वे रास्ता भटक गए।

शाम 7:30 बजे जब स्थिति गंभीर हो गई, तो समूह के सदस्यों ने 112 हेल्पलाइन पर कॉल करके मदद मांगी। उस समय तक बारिश इतनी तेज हो चुकी थी कि आगे बढ़ना या वापस लौटना दोनों ही खतरनाक था। समूह ने एक ऊंचाई पर स्थित वन क्षेत्र में शरण ली, जहां वे पूरी रात बारिश, तेज हवाओं और ठंड का सामना करते रहे।

जटिल बचाव अभियान की शुरुआत

डिस्ट्रेस कॉल मिलने के तुरंत बाद SP प्रह्लाद सहाय मीणा के नेतृत्व में 40 सदस्यीय रेस्क्यू टीम तैयार की गई। इस टीम में डिस्ट्रिक्ट वॉलंटियर फोर्स (DVF), पुलिस कर्मी, फायर सर्विसेज के जवान, और फॉरेस्ट ऑफिशियल्स शामिल थे। IGP (नॉर्दर्न रेंज) हिमांशु लाल भी घटनास्थल पर पहुंचे और बचाव कार्य की निगरानी की। DG Y B खुराना ने भी पूरे ऑपरेशन पर नजर रखी।

रेस्क्यू ऑपरेशन की सबसे बड़ी चुनौती मौसम की खराबी थी। तेज बारिश, बिजली चमकना, और तूफानी हवाओं के कारण रात में खोज कार्य बेहद मुश्किल हो गया था। भूस्खलन का खतरा भी था, जिसके कारण रेस्क्यू टीम को सुबह तक इंतजार करना पड़ा। मोबाइल फोन ट्रैकिंग और GPS लोकेशन की मदद से टीम ने फंसे हुए पर्यटकों की सटीक स्थिति का पता लगाया।

तकनीक और मानवीय प्रयासों का संयोजन

बचाव अभियान में आधुनिक तकनीक का बेहतरीन उपयोग हुआ। मोबाइल फोन सिग्नल ट्रैकिंग और GPS तकनीक की मदद से पहाड़ी के घने जंगल में फंसे लोगों की सही लोकेशन पता लगाई गई। हालांकि, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज के साथ-साथ स्थानीय लोगों के अनुभव और पहाड़ी इलाके की जानकारी भी महत्वपूर्ण साबित हुई। फॉरेस्ट गार्ड्स और स्थानीय गाइड्स ने खतरनाक रास्तों की पहचान करने और सुरक्षित मार्ग निकालने में अहम भूमिका निभाई।

गुरुवार सुबह मौसम में सुधार के साथ ही रेस्क्यू टीम एक्शन में आ गई। सुबह 11 बजे तक टीम ने वन के एक पठार पर फंसे हुए समूह को लोकेट कर लिया। शाम 4 बजे तक सभी 17 पर्यटकों को सुरक्षित रूप से नृसिंहनाथ नेचर कैंप तक पहुंचा दिया गया। बचाव अभियान के दौरान एक फॉरेस्ट ऑफिशियल के पैर में चोट लगी, लेकिन कोई गंभीर हादसा नहीं हुआ।

स्वास्थ्य स्थिति और चिकित्सा सहायता

बचाए गए सभी 17 पर्यटकों की स्वास्थ्य स्थिति स्थिर बताई गई है। 15 घंटे तक खुले आसमान के नीचे बारिश में बिताने के बावजूद किसी की हालत गंभीर नहीं हुई। रेस्क्यू के दौरान ही टीम ने उन्हें इमरजेंसी फूड और पानी उपलब्ध कराया था। बेस कैंप पहुंचने पर सभी की मेडिकल जांच की गई और कुछ को सावधानी के तौर पर दवाइयां दी गईं। पूरी रात ठंड और नमी में रहने के कारण कुछ लोगों को सर्दी-जुकाम की शिकायत हुई, लेकिन कोई गंभीर स्वास्थ्य समस्या नहीं आई।

गंधमर्दन पहाड़ियों की भौगोलिक चुनौतियां

गंधमर्दन पहाड़ियां अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन यहां ट्रेकिंग काफी चुनौतीपूर्ण है। नृसिंहनाथ से हरिशंकर तक का 17 किलोमीटर का रास्ता घने जंगल, खड़ी चढ़ाई, और अनेक प्राकृतिक बाधाओं से भरा है। मानसून के दौरान यह इलाका और भी खतरनाक हो जाता है क्योंकि अचानक बारिश, भूस्खलन, और नदी-नालों में बाढ़ का खतरा रहता है।

पारंपरिक तीर्थयात्रा मार्ग होने के बावजूद, यहां की पगडंडियां स्पष्ट रूप से चिह्नित नहीं हैं और GPS सिग्नल भी कमजोर होते हैं। स्थानीय गाइड की मदद के बिना यहां ट्रेकिंग करना जोखिम भरा माना जाता है, खासकर बारिश के मौसम में।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top